200 का आंकड़ा पार, महाराष्ट्र में महायुति को प्रचंड बहुमत, सुनामी वाली जीत के 6 कारणों से समझिए

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मुंबई / अकबर खान

मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत की हैट्रिक लगाई है। महायुति ने महाराष्ट्र की सत्ता में बैठने के लिए बहुमत का आंकड़े 145 से भी अधिक 200 का आंकड़े को पार कर लिया है। बीजेपी 125 शिंदे की शिवसेना और अजित पवार भी पावरफुल बनकर उभरे। एनसीपी का स्ट्राइक रेट 70 फीसदी से अधिक रहा। वह चाचा शरद पवार पर विधानसभा में भारी पड़े। अघाड़ी महाराष्ट्र चुनाव में पूरी तरह धूल फांकती नजर आई। महाविकास अघाड़ी की कोई पार्टी 28 का आंकड़ा नहीं छू पाई, जो नेता प्रतिपक्ष की सीट के लिए जरूरी है। उद्धव ठाकरे ने इस जनादेश पर हैरानी जताई। महाराष्ट्र चुनाव में इस प्रचंड जीत का सबसे बड़ा कारण लोकसभा चुनाव में महायुति की हार है, जिसके बाद बीजेपी ने अचानक से रणनीति बदल दी। पूरे चुनाव में महायुति एकजुट नजर आई और सभी सहयोगी चुनावी एजेंडे पर एकजुट रहे। चुनाव से पहले सीएम के चेहरे को लेकर तनातनी और बयानबाजी ने भी अघाड़ी की गाड़ी पर ब्रेक लगा दिया।

1.लाडली बहनों ने वोट से दिया महायुति का साथ
महाराष्ट्र चुनाव से पहले शिंदे सरकार ने लाडली बहना योजना शुरु की, जिसमें महिलाओं के लिए 1500 रुपये हर महीने दिए गए। चुनाव प्रचार के दौरान महायुति ने इस राशि को 2100 रुपये हर महीने देने का वादा किया। इसके अलावा किसानों के लिए कर्जमाफी का वादा भी किया। महायुति के तीनों घटकों ने लाडली योजना को हर तरह से भुनाने की कोशिश की। रिपोर्टस के अनुसार, इसके प्रचार पर ही 200 करोड़ रुपये खर्च किए गए। 20 नवंबर को भी एक किस्त जारी की गई। चुनाव में इसका असर यह रहा कि महिलाएं वोट के लिए बाहर निकलीं। धुले में महिलाओं ने रात तक मतदान किया।

2.एकनाथ शिंदे बने तुरुप का पत्ता, गजब ही कर दिया
उद्धव ठाकरे की सरकार गिराकर सीएम बनने वाले एकनाथ शिंदे इस चुनाव के तुरुप का पत्ता बनकर उभरे। उद्धव गुट से ‘गद्दार’ और ‘धोखेबाज’ जैसी आलोचना झेलने के बाद उन्होंने ढाई साल में विकास करने वाले और आम लोगों के बीच रहने वाले नेता की छवि बनाई। उन्होंने हमेशा बाल ठाकरे की तस्वीर रखकर यह जताने में सफल रहे कि उद्धव ठाकरे सत्ता के लिए उनके आदर्शों को भूल चुकी है। अनुभवी राजनेता की तरह शिंदे ने चुनाव से पहले ही तय कर दिया कि महायुति की सरकार के लिए वह अपनी कुर्सी का त्याग कर सकते हैं। लाडली बहन योजना, बेरोजगारों को भत्ता जैसे स्कीम के कारण वह देवेंद्र फडणवीस और उद्धव से भी ज्यादा लोकप्रिय सीएम साबित हुए। टिकट के बंटवारे के दौरान भी वह कहीं बीजेपी के सामने कमजोर नजर नहीं आए और सभी भरोसेमंद को टिकट दिया।

3.महाराष्ट्र में चल गया बंटेंगे तो कटेंगे का जादू
बीजेपी की ओर से योगी आदित्यनाथ और पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार में एक बड़ी लकीर खींच दी। योगी ने ‘कटेंगे तो बंटेंगे’ का नारा दिया। पीएम मोदी ने भी ‘एक है तो सेफ हैं’ जैसी अपील कर योगी के नारे को कल्ट बना दिया। चुनाव के बीच वक्फ बोर्ड की ओर से जिस तरह जमीन पर दावे किए गए, उससे आम वोटरों के बीच इस नैरेटिव को ताकत मिल गई। मुस्लिम संगठनों की ओर से महाविकास अघाड़ी के लिए वोटिंग करने का फतवा भी महायुति के लिए वरदान साबित हुआ। देवेंद्र फडणवीस और असदुद्दीन औवैसी के बीच राजनीतिक बहस, अकबरुद्दीन ओवैसी के चुनावी भाषण ’15 मिनट अभी बाकी हैं’ ने भी हिंदू वोटरों को एकजुट कर दिया। अब नतीजा सबके सामने हैं, बीजेपी अपने दम पर 2014 से भी बड़ी जीत हासिल कर चुकी है।

4.उद्धव ठाकरे ने भी किया अघाड़ी को चौपट
लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को बड़ी जीत मिली थी। इस जीत के बाद शिवसेना नेताओं के तेवर धारदार हो गए। उद्धव ठाकरे समेत यूबीटी के नेता बीजेपी के विरोध के सुर में यह भूल गए कि उनकी छवि हिंदुत्ववादी पार्टी की है। बाल ठाकरे की छवि से उलट उद्धव ठाकरे ने खुद को सर्वसमाज के नेता बनाने की कोशिश की। टिकट बंटवारे के दौरान जिस तरह सीटों और सीएम फेस को लेकर विवाद हुआ, उससे भी उद्धव कमजोर नजर आए। संजय राउत जैसे नेता के बयान ने भी यूबीटी को नुकसान पहुंचाया। इस चुनाव के दौरान उद्धव गुट ने विकास की बात कम और शिंदे से बदले की लड़ाई ज्यादा लड़ी। रही सही कसर प्रचार के दौरान उद्धव ठाकरे के खुद के बनाए वीडियो ने पूरी कर दी। दूसरी ओर, शिंदे ने ढाई साल के शासन में उनसे ज्यादा एक्टिव नेता की छवि बना ली।

5.अजित दादा भी चले सधी चाल, नहीं छिटकने दिया वोटर
महाराष्ट्र चुनाव में महायुति के साथी बनकर अजित पवार ने बड़ी सधी हुई चाल चली। 41 सीटों पर उनकी अपने चाचा शरद पवार की पार्टी एनसीपी-एसपी से सीधी टक्कर थी। 51 सीटों पर वह महायुति के साथ थे जबकि 8 सीटों पर उनके उम्मीदवार फ्रेंडली फाइट करते रहे। उनके सामने योगी आदित्यनाथ के नारे बंटेंगे तो कटेंगे के नारे से ट्रडिशनल वोटरों को बचाना था, जिसे उन्होंने बखूबी निभा लिया। वह खुलकर आदित्यनाथ का विरोध करते रहे। इस दौरान उन्होंने एक चालाकी बरती। पूरे प्रचार के दौरान अजित पवार और उनके कैंडिडेट ने शरद पवार की आलोचना नहीं की। साथ ही सहयोगी बीजेपी को भी कंट्रोल में रखा। इससे पहले लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले के खिलाफ पत्नी को उतारने की गलती पर खुलेआम प्रायश्चित किया। इन सधी चाल से अजित पवार अपने चाचा पर ही भारी पड़े और उनसे ज्यादा सीटें जीतकर बारामती और मराठवाड़ा की राजनीति में अपना वर्चस्व जमा लिया।

6.आरएसएस का जमीन पर समर्थन का असर
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की हार के कई कारणों में यह सामने आया था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने चुनाव में सीधे हस्तक्षेप से दूरी बना रखी थी। इस कारण ग्राउंड पर जब कांग्रेस और अघाड़ी ने संविधान बचाओ का नैरेटिव निकाला, तब हवा बदल गई। आरक्षण को लेकर भी जिस तरह हवा बनी थी, उसका मुकाबला भी बीजेपी नहीं कर सकी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में आरएसएस ने साथ दिया। चुनावी सभा में देवेंद्र फडणवीस भी संघ के गीत गाए। सूत्रों के अनुसार, आरएसएस ने बीजेपी के चीफ मिनिस्टर पद के लिए देवेंद्र फडणवीस का नाम भी तय कर दिया। फिर आरएसएस और उसके अनुषांगिक संगठन के कार्यकर्ता मैन टु मैन मार्किंग के आधार पर काम किया। इस बार राहुल गांधी की लाल किताब का असर नहीं हुआ।

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