मुंबई / संवाद दाता
मुंबई : संत तुकाराम महाराज की तपोभूमि श्री क्षेत्र भामचंद्र डोंगर एवं भंडारा डोंगर सरकार के अनुसार, 2011 की मूल निष्पक्ष अधिसूचना लागू होते हुये भी वहांपे एमआयडीसी राजकीय धनिक बिल्डर व्यावसायिकों के द्वारा अतिक्रमण हो रहा है उसके तरफ सरकार का ध्यान नही है। सोनू 2011 की जो दोन्ही पर्वतो की बारे मे अधिसूचना निकाली है वो यहा जारी करना जरुरी है और वही दोनो पर्वतो को न्याय दे सकती है सरकार को इसे स्थाई रूप से लागू करना चाहिए. उपरोक्त विषय हेतु “संतभूमि संरक्षक संघर्ष समिति” वर्ष 2007 से प्रमुख- मधुसूदन पाटिल महाराज के साथ-साथ कार्यकर्ता वारकरी संत और किसान सनदशिर मार्ग से जगद्गुरु संत तुकोबा की तपोभूमि की रक्षा के लिए आंदोलन कर रहे हैं। यहाँसे साधक वारकरी इस पवित्र भूमि से निर्वासित होने के बाद . इस तपोभूमी में संघर्ष छेडा गया । मधुसूदन महाराज की विद्वता और निरंतर अनुवर्ती कारवाई को ध्यान में रखते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने इस प्राचीन गुफाऍ और भंडारा -भामचंद पर्वत को संरक्षित रूप दिया है, लेकीन हो कागज पे ही है ।
सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परंपरा की यह अनमोल धरोहर श्रीक्षेत्र भामचंद्र एवं भंडारा डोंगर को 2011 में “राज्य संरक्षित स्मारक” घोषित किया गया l लेकीन देहू संस्थान भी इस तपोभूमी के बारे में अनभिज्ञ है .इस प्रकार यहा महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल भी इस तपोभूमी के बारेमे अनभिज्ञ है ,क्योंकि एमआयडीसी ने यहा अतिक्रमण करके संत भूमी की जमीन कब्जे मे ले लिया है इस मूल अधिसूचना में स्वार्थी राजनेताओं और भू-माफियाओं के दबाव के कारण संशोधित प्रस्ताव के तहत पुरातत्व विभाग ने राष्ट्रीय अधिकारियों के रजिस्टर में आमूल-चूल परिवर्तन किये हैं
पुरातत्व विभाग के प्रस्ताव के अनुसार अधिसूचना अंतर्गत आंतरिक संरक्षित क्षेत्र को आधा कर दिया गया । सन 2012 में इसे मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा गया था, लेकिन ये प्रस्ताव गलत कैसा ,किस प्रकार तपोभूमि पहाड़ियों को नष्ट करने वाला और ऐतिहासिक विरासत के लिए हानिकारक है यह महाराजा द्वारा समय-समय पर अनेक पत्र प्रस्तावों एवं वक्तव्यों के माध्यम सिद्ध हो चुका है। अतिक्रमण और अवैध खनन के साक्ष्य सरकारी अदालत में साबित होने के बाद भी फैसला नही , इसलिए सरकार की इस खलनीति के खिलाफ वारकरी संस्कृतिप्रेमी , इतिहासप्रेमीओंका आक्रोश है ।
वारकरी संप्रदाय को पुरातत्व सरकार का 2012 का संशोधित प्रस्ताव स्वीकार्य नही है ।
महाराष्ट्र में वारकरी, फडकरी, दींडीकरी और कई ग्राम पंचायतों ने इस पर एक प्रस्ताव पारित किया
समय-समय पर कई आपत्तियां उठती रही हैं लेकिन उन पर निर्णय लेना सरकार का प्रमुख कर्तव्य है ।
हालांकि शासन स्तर से अभी भी इसके प्रति संवेदनशील नहीं है
। इस प्रेस वार्ता के माध्यम से संघर्ष समिति का सरकार से अनुरोध है की
यह इन तपोभूमि पहाड़ियों के प्रति वारकरी समुदाय की गर्मजोशी और संस्कृति
प्रेमियों, इतिहास प्रेमियों और जनता की भावना को गंभीरता से सरकारने लेना चाहिए और दोनों पहाड़ों सन 2011 की मूल अधिसूचना को यथावत लागू करने का अध्यादेश तत्काल पारित करना चाहिए
और इस तपोभूमि पहाड़ी से अतिक्रमण को तुरंत हटाया जाए नहीं तो हमें सरकार के खिलाफ जन आंदोलन छेडना पडेगा वो आंदोलन डाऊ केमिकल कंपनी के खिलाफ जो आंदोलन हो चुका था उसी से भी उग्र होगा ।
हमने ऐसा लिखित अभ्यावेदन 16-08-2024 को मुख्यमंत्री को दिया है। संतभूमी संरक्षक संघर्ष समिती ने माननीय संपादकों ये आवेदन दिया है ।
- संतभूमि संरक्षक संघर्ष समिती तपोभूमि की रक्षा के लिए संतों का आंदोलन इशारा l*
मुंबई / संवाद दाता
मुंबई : संत तुकाराम महाराज की तपोभूमि श्री क्षेत्र भामचंद्र डोंगर एवं भंडारा डोंगर सरकार के अनुसार, 2011 की मूल निष्पक्ष अधिसूचना लागू होते हुये भी वहांपे एमआयडीसी राजकीय धनिक बिल्डर व्यावसायिकों के द्वारा अतिक्रमण हो रहा है उसके तरफ सरकार का ध्यान नही है। सोनू 2011 की जो दोन्ही पर्वतो की बारे मे अधिसूचना निकाली है वो यहा जारी करना जरुरी है और वही दोनो पर्वतो को न्याय दे सकती है सरकार को इसे स्थाई रूप से लागू करना चाहिए. उपरोक्त विषय हेतु “संतभूमि संरक्षक संघर्ष समिति” वर्ष 2007 से प्रमुख- मधुसूदन पाटिल महाराज के साथ-साथ कार्यकर्ता वारकरी संत और किसान सनदशिर मार्ग से जगद्गुरु संत तुकोबा की तपोभूमि की रक्षा के लिए आंदोलन कर रहे हैं। यहाँसे साधक वारकरी इस पवित्र भूमि से निर्वासित होने के बाद . इस तपोभूमी में संघर्ष छेडा गया । मधुसूदन महाराज की विद्वता और निरंतर अनुवर्ती कारवाई को ध्यान में रखते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने इस प्राचीन गुफाऍ और भंडारा -भामचंद पर्वत को संरक्षित रूप दिया है, लेकीन हो कागज पे ही है ।
सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक परंपरा की यह अनमोल धरोहर श्रीक्षेत्र भामचंद्र एवं भंडारा डोंगर को 2011 में “राज्य संरक्षित स्मारक” घोषित किया गया l लेकीन देहू संस्थान भी इस तपोभूमी के बारे में अनभिज्ञ है .इस प्रकार यहा महाराष्ट्र औद्योगिक विकास महामंडल भी इस तपोभूमी के बारेमे अनभिज्ञ है ,क्योंकि एमआयडीसी ने यहा अतिक्रमण करके संत भूमी की जमीन कब्जे मे ले लिया है इस मूल अधिसूचना में स्वार्थी राजनेताओं और भू-माफियाओं के दबाव के कारण संशोधित प्रस्ताव के तहत पुरातत्व विभाग ने राष्ट्रीय अधिकारियों के रजिस्टर में आमूल-चूल परिवर्तन किये हैं
पुरातत्व विभाग के प्रस्ताव के अनुसार अधिसूचना अंतर्गत आंतरिक संरक्षित क्षेत्र को आधा कर दिया गया । सन 2012 में इसे मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा गया था, लेकिन ये प्रस्ताव गलत कैसा ,किस प्रकार तपोभूमि पहाड़ियों को नष्ट करने वाला और ऐतिहासिक विरासत के लिए हानिकारक है यह महाराजा द्वारा समय-समय पर अनेक पत्र प्रस्तावों एवं वक्तव्यों के माध्यम सिद्ध हो चुका है। अतिक्रमण और अवैध खनन के साक्ष्य सरकारी अदालत में साबित होने के बाद भी फैसला नही , इसलिए सरकार की इस खलनीति के खिलाफ वारकरी संस्कृतिप्रेमी , इतिहासप्रेमीओंका आक्रोश है ।
वारकरी संप्रदाय को पुरातत्व सरकार का 2012 का संशोधित प्रस्ताव स्वीकार्य नही है ।
महाराष्ट्र में वारकरी, फडकरी, दींडीकरी और कई ग्राम पंचायतों ने इस पर एक प्रस्ताव पारित किया
समय-समय पर कई आपत्तियां उठती रही हैं लेकिन उन पर निर्णय लेना सरकार का प्रमुख कर्तव्य है ।
हालांकि शासन स्तर से अभी भी इसके प्रति संवेदनशील नहीं है
। इस प्रेस वार्ता के माध्यम से संघर्ष समिति का सरकार से अनुरोध है की
यह इन तपोभूमि पहाड़ियों के प्रति वारकरी समुदाय की गर्मजोशी और संस्कृति
प्रेमियों, इतिहास प्रेमियों और जनता की भावना को गंभीरता से सरकारने लेना चाहिए और दोनों पहाड़ों सन 2011 की मूल अधिसूचना को यथावत लागू करने का अध्यादेश तत्काल पारित करना चाहिए
और इस तपोभूमि पहाड़ी से अतिक्रमण को तुरंत हटाया जाए नहीं तो हमें सरकार के खिलाफ जन आंदोलन छेडना पडेगा वो आंदोलन डाऊ केमिकल कंपनी के खिलाफ जो आंदोलन हो चुका था उसी से भी उग्र होगा ।
हमने ऐसा लिखित अभ्यावेदन 16-08-2024 को मुख्यमंत्री को दिया है। संतभूमी संरक्षक संघर्ष समिती ने माननीय संपादकों ये आवेदन दिया है ।